सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

मर्म कविता का

मर्म कविता का

अगर हो समझना मर्म कविता का
जब भी पढ़ना, मन लगाकर पढ़ना
अपनी कविता मानकर तुम कविता पढ़ना

क्यूंकि कवि कहता है सदा ही
कहानी दूसरों की अपनी ही जबानी

इसलिए गर हो समझना कवि को
खुद को कवि बनाकर, तुम कविता पढ़ना...

--- प्रेमित (c)