मर्म कविता का
अगर हो समझना मर्म कविता का
जब भी पढ़ना, मन लगाकर पढ़ना
अपनी कविता मानकर तुम कविता पढ़ना
क्यूंकि कवि कहता है सदा ही
कहानी दूसरों की अपनी ही जबानी
इसलिए गर हो समझना कवि को
खुद को कवि बनाकर, तुम कविता पढ़ना...
--- प्रेमित (c)
अगर हो समझना मर्म कविता का
जब भी पढ़ना, मन लगाकर पढ़ना
अपनी कविता मानकर तुम कविता पढ़ना
क्यूंकि कवि कहता है सदा ही
कहानी दूसरों की अपनी ही जबानी
इसलिए गर हो समझना कवि को
खुद को कवि बनाकर, तुम कविता पढ़ना...