रूह की आस
वो बेगाने होकर लाड़ जताते है।
उन्हे क्या पता बेगानों से दिल नही लगाते है।।
नाम लेने से हो जाते हैं बदनाम।
बेनामी जीने का भी अपना ही नशा है।।
दूसरों की फ़िक्र में जिंदगी गुज़ारी।
कब कहाँ हमने अपनी रूह को छुआ है।।
--- प्रेमित (c) 6th Jan 2014