गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

बाबा के नाम मेरी खुली चिट्ठी Open Letter to Grand Father

निर्वाण दिवस
बाबा (दादा) श्री प्रताप नारायण (१९२२-२०१७) की प्रथम पुण्यतिथि 

हिन्दी तिथि से ८ जनवरी २०१९ को सत्संग नगर शेरघाटी में पुण्य तिथि समारोह का आयोजन होगा।


!बाबा के नाम मेरी खुली चिट्ठी!

कोनेक्टिकट, अमेरिका
२० दिसंबर २०१८


पूज्य बाबा,

काश मैं ये चिट्ठी काग़ज़ पे लिख के पोस्ट कर पाता और आप उसको वैसे ही पढ़ते जैसे की आप चाचा लोग की चिट्ठियाँ गीली आँखो से अपने आँसू छुपाते हुए मामा को सुनाते थे।

आज से एक साल पहले आपका नश्वर शरीर हमें छोड़ गया। पर मुझे आज तक प्रतीत नहीं होता की आप मेरे साथ नहीं हैं। मुझे अभी भी कोई परेशानी होती है मैं आपको याद करता हुँ और किसी ना किसी माध्यम से मुझे आपका सुझाव एवं समाधान मिल ही जाता है।

पता नहीं वो क्या विचार था, किसकी प्रेरणा थी की चौथी क्लास की छोटी सी उम्र से आपके साथ रहने का सौभाग्य मिला। आज जब अवि उसी उम्र का है तो मैं सोचता हूँ क्या मैं अपने पुत्र अवि को अपने से दूर रहने दे सकता हूँ? अब समझ में आता है की माँ पापा के लिए कितना मुश्किल रहा होगा मुझे अपने से दूर आपके और मामा के पास छोड़ना। अब मुझे उनका त्याग समझ में आता है। मैं शायद कभी अपने पापा की तरह का बेटा ना बन पाऊँ, कभी उनकी उतनी सेवा ना कर पाऊँ जितनी उन्होंने आपकी की। मैं तो दूर रहता हुँ और आपको स्मृतियों में पहुत पहले बसा लिया था जब आपसे दूर गया पढ़ाई और रोज़गार के चक्कर में, पर जो वहाँ हैं उन्हें आपकी कमी कितनी खलती होगी ये वही जानते होंगे भले बतायें या नहीं। 

मैं आज जो भी हूँ वो आपके सानिध्य से प्राप्त संस्कार, शिक्षा, सोच, प्रकृति, स्वभाव की वजह से हूँ। आपकी प्रेरणादायी बातें हमेशा मुझे सही और ग़लत के बीच चुनाव करने में सहायता करती हैं। आपने कभी भी अपनी बातें थोपी नहीं बल्कि इस तरह से उसे प्रयोग के साथ बतायीं की वो सब मेरे अंतस में कब और कैसे समाहित हो गयीं पता ही नहीं चला। आपने तो कभी नहीं कहा और पढ़ो, और नम्बर लाओ इत्यादि बल्कि आपने हमेशा संतुलित होकर सोचने और आगे बढ़ने को प्रेरित किया। कितनी सारी कुंठाओ को आपने सिर्फ़ बातों बातों में दूर कर दिया। आपके साथ शाम में ऊँगली पकड़ कर चलना और प्रश्नोतरी करना, कहानियाँ सुनना सब मेरी आँखो के सामने आ जाता है और मैं उन्ही में अपनी समस्याओँ का हल पा जाता हूँ, जैसे गूगल सर्च आजकल हमें कई चीज़ें बताता है। मेरे गूगल सर्च आप थे, हैं, और रहेंगे। 


आपकी दो  महत्वपूर्ण बातेँ - पहली ‘सुनो, सोचो, समझो तब बोलो’ और दूसरी  ‘अगर करूँ या ना करूँ, जाऊँ या ना जाऊँ में दुविधा हो तो ज़रूर करो ज़रूर जाओ। और कुछ नहीं होगा तो नया अनुभव होगा’ ने मुझे कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया। मैं तो सिर्फ़ इन दोनो बातों पे अमल कर रहा था, करता हूँ और करता रहूँगा। सपने में भी नहीं सोचा था की शेरघाटी के बेसिक स्कूल में बोरे पे बैठ कर पढ़ने वाला, अंग्रेज़ी से डरने वाला ये आपका पोता आज अमेरिका में बैठ कर आपको ये पत्र ब्लॉग पे लिख रहा होगा। बेशक मुझे बनाने में मेरे पूरे परिवार का सहयोग है लेकिन नींव तो आप ही की रखी हुई है। आपकी मज़बूत इच्छाशक्ति को मैं अपने अंदर समाहित करने की कोशिश करता हूँ।

आपने हमारे लिए समय के साथ अपने आप को कितना बदला वो भी मेरे लिए हमेशा प्रेरणादायक रहा है। प्राचार्य के रूप में  एक कठोर  प्रशासक, कुशल अभिभावक, अनुभवी मार्गदर्शक से लेकर Whatsapp पर विडीओ काल करने और नयी तकनीक इस्तेमाल करने तक, आप हमेशा समय के साथ सिर्फ़ अपने आप को बदलते ही नहीं रहे बल्कि दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत रहे। जब मामा हमें छोड़ कर चली गयी तब आपने अपने  दुःख अपने अकेलेपन को कैसे बिना किसी को बताये झेला वो मैंने देखा है। मैं छोटा था पर फिर भी समझता था। मामा के गुज़रने का मेरे ऊपर भी गहरा असर हुआ था। वो साल आपने कैसे मुझे संभाला वो किसी को नहीं पता। मैं तो दुःख और अपनी कुंठाओं में घिरा था और आप दुःखी होते हुए भी मुझे अवसाद से निकाल कर सकारत्मकता से भर दिया। 

आपके शरीर छोड़ने से मेरे लिए सिर्फ़ यही बदला है की मैं पहले पोता था अब किसी का पोता नहीं रहा, अब सिर्फ़ पुत्र हूँ और पिता हूँ। आप अपने साथ पूरी एक पीढ़ी ले गये। कितना कुछ रह गया आपसे सिखने को। कितना कुछ रह गया सहेजने को। कितना कुछ रह गया आपको बताने को। कितना कुछ रह गया आपको दिखाने को। अभी तक तो आप ही दिखाते रहे, अभी तो मैं सक्षम हुआ था की आपको कुछ दिखाउँ। जैसे आपने कभी किसी का अहसान नहीं लिया वैसे ही मुझे ये मौक़ा भी नहीं दिया। आपने कभी कहा नहीं पर मुझे पता है की आप हवाई यात्रा करना चाहते थे। कितना सहेज कर pacemaker certificate को रखते थे की airport security check में उसकी ज़रूरत पड़ेगी। थोड़ा समय तो दे देते पर आप तो पहले ही अपनी यात्रा पे निकल लिये। आपसे हमेशा ये शिकायत रहेगी की आपने कुछ करने का मौक़ा नहीं दिया।

आप कुछ भी कर ले, मैं आपको जाने नहीं दूँगा। आप हमेशा हमारे साथ रहेंगे हमारी स्मृतियों में, हमारी यादों में, हमारे संस्कारों में, हमारी बातों में, हमारे रूप में, हमारे अंश में - हमेशा हमेशा हमारे साथ रहेंगे।


आपका जन्मदिन आ रहा है, आपको जन्मदिन की अग्रिम शुभकामनायें। 

जैसा की आप हमेशा करते हैं, पत्र की व्याकरणीय और वर्तनी की अशुद्धियों को इंगित करते हुए आपके उत्तर की प्रतीक्षा रहेगी।

सादर नमन,
प्रतीक्षारत आपका पौत्र,

अमित


© Pemit प्रेमित @amitcma 

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

The Year


The Year 

How strange is the relationship between December and January?
Such as old memories and new promises
Both are quite delicate, both have depth
Both have stances, both have stumbles

Both of them are the same face same color
The same number of dates and the same cold
But the identity is different, the aura is Different
Different feelings, Different perspectives

One past, one future,
One end, one beginning
Like night to morning, morning to night
One has stories one has hopes
One is experience, the other has opportunities

Both are connected, such as the two ends of the thread
But still so near and together
Whatever December leaves behind, January adopts them
And those who has the promises for January, they followed from December

It takes 11 months to travel from January to December
But just in a moment you arrive from December to January
When they go farther, they change the weather
When they come closer, they change the Year

Looks like only two other months of the year
But capable of making and destroying everything
Together they keep tied up the rest of the months
and made their separation a festival for the world
Not to forget the memories and always look for future!

© Pemit प्रेमित @amitcma 
(Dec 7th 2018 - inspired from one of Hindi poems from social media)