शनिवार, 21 दिसंबर 2013

माँ

माँ!!

माँ हमेशा कुछ दे जाती है

जन्म से पहले कोख में आश्रय देती
आकार लेते ही स्तन निचोड़ने देती
माँ हमेशा कुछ दे जाती है।

मुसीबतों में आँचल छुपने को देती
कितनी गलतियाँ छिपाती लाड़ती- दुलारती
बचाती दुनिया की जालिम नजरों से
सम्पूर्ण विकास का मौका देती
माँ हमेशा कुछ दे जाती है।

उज्जवल भविष्य के लिये, मन को मार
अपने से दूर जाने देती है
हमारी भलाई के न जाने क्या क्या
मनौतियाँ करती मनाती
हमेशा दुआयें देती
माँ हमेशा कुछ दे जाती है।

--- प्रेमित (c) 21st Dec 2013 (on Mom's Birthday)

सोमवार, 18 नवंबर 2013

अकेले का मेला

अकेला हूँ नही
अकेला रहूँगा नही
दुनिया के मेले

आना जाना
हमेशा होता अकेले
कौन रोता है
यादें रह जाती अकेले

अकेला हूँ नही
अकेला रहूँगा नही
जश्न के हैं झमेले।।

--- प्रेमित (c) 16th Nov 2013 (@ Great Wall of China)

रविवार, 24 मार्च 2013

भारतीयता - Just thought today in Holi Milan Samaroh

भारतीयता - Just thought today in Holi Milan Samaroh

विदेश में आकर ज्यादा देशी हो जाते हैं,
लोगों को भारतीयता सीखाते हैं।

थूकते थे पान की पीक सड़क पे हम भी,
विदेश में मुॅह मे ही गटक जाते हैं।

खेलते हैं होली यहां भी जमकर रंगों से,
पर वो देश का रंग कहा ला पाते हैं।

विदेश में आकर ज्यादा देशी हो जाते हैं,
लोगों को भारतीयता सीखाते हैं।

--- प्रेमित (c) 24th March 2013, Holi Milan BIJHAR, 2013

गुरुवार, 21 मार्च 2013

समय बीत जाता है

।।।समय बीत जाता है।।।

कह दो सारी अनकही बातें
मौका मिलता है
मुश्किल से।।

रह जाते
सोचते
हाथ मलते अक्सर
अतीत सोचकर

बहा दो
मन के गुबार
शब्द बनाकर
आँखों से

पत्थर
शायद कोई
हो तैयार बहने को
सैलाब के साथ

फेंक दिए जाते
किनारे पे
जो भी जाता समुद्र में
लगता है डर किनारे से

बहने के लिए मांझी के साथ
जरुरी है एक मजबूत सहारा
हाथों का
प्रवाह के लिए

मुगालते में रहना
है बेकार
उम्मीद
हो जाती नाकाम

खोल दो
हृदयके तार
मत करो
इंतजार

भय लगता है मिलन से
क्योंकि होता है
विरह
मिलन के बाद

कह दो सारी अनकही बातें
मौका मिलता है
मुश्किल से।।

--- प्रेमित (c) 21st March 2013 (world poetry day)

शनिवार, 16 मार्च 2013

प्रवासी....

हर बार मंज़िल तक पँहुच नाहासिल सा लगा,
ज़ो देखा हर ओर, हर चेहरा बेगाना सा लगा ।

घर से दूर घर बनाना, हमेशा बंजारो सा लगा,
लाख कर ली वफाऐ़ं, हर लम्हा मगर पराया सा लगा।

तड़प रहा हूँ, आकर तेरी आगोश में सर छुपाने को,
चला जिस रस्ते ताउम्र, वापसी उसपे अनजाना सा लगा।

ना वो जमीं ना वो आसमां, चमचमाती भीड़ का कारवां,
दफ़न ना करना यहां मुझे, रूह भी अपना बेगाना सा लगा।

--- प्रेमित (c) 16th March 2013

सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

मर्म कविता का

मर्म कविता का

अगर हो समझना मर्म कविता का
जब भी पढ़ना, मन लगाकर पढ़ना
अपनी कविता मानकर तुम कविता पढ़ना

क्यूंकि कवि कहता है सदा ही
कहानी दूसरों की अपनी ही जबानी

इसलिए गर हो समझना कवि को
खुद को कवि बनाकर, तुम कविता पढ़ना...

--- प्रेमित (c)