भारतीयता - Just thought today in Holi Milan Samaroh
विदेश में आकर ज्यादा देशी हो जाते हैं,
लोगों को भारतीयता सीखाते हैं।
थूकते थे पान की पीक सड़क पे हम भी,
विदेश में मुॅह मे ही गटक जाते हैं।
खेलते हैं होली यहां भी जमकर रंगों से,
पर वो देश का रंग कहा ला पाते हैं।
विदेश में आकर ज्यादा देशी हो जाते हैं,
लोगों को भारतीयता सीखाते हैं।
--- प्रेमित (c) 24th March 2013, Holi Milan BIJHAR, 2013
रविवार, 24 मार्च 2013
गुरुवार, 21 मार्च 2013
समय बीत जाता है
।।।समय बीत जाता है।।।
कह दो सारी अनकही बातें
मौका मिलता है
मुश्किल से।।
रह जाते
सोचते
हाथ मलते अक्सर
अतीत सोचकर
बहा दो
मन के गुबार
शब्द बनाकर
आँखों से
पत्थर
शायद कोई
हो तैयार बहने को
सैलाब के साथ
फेंक दिए जाते
किनारे पे
जो भी जाता समुद्र में
लगता है डर किनारे से
बहने के लिए मांझी के साथ
जरुरी है एक मजबूत सहारा
हाथों का
प्रवाह के लिए
मुगालते में रहना
है बेकार
उम्मीद
हो जाती नाकाम
खोल दो
हृदयके तार
मत करो
इंतजार
भय लगता है मिलन से
क्योंकि होता है
विरह
मिलन के बाद
कह दो सारी अनकही बातें
मौका मिलता है
मुश्किल से।।
--- प्रेमित (c) 21st March 2013 (world poetry day)
कह दो सारी अनकही बातें
मौका मिलता है
मुश्किल से।।
रह जाते
सोचते
हाथ मलते अक्सर
अतीत सोचकर
बहा दो
मन के गुबार
शब्द बनाकर
आँखों से
पत्थर
शायद कोई
हो तैयार बहने को
सैलाब के साथ
फेंक दिए जाते
किनारे पे
जो भी जाता समुद्र में
लगता है डर किनारे से
बहने के लिए मांझी के साथ
जरुरी है एक मजबूत सहारा
हाथों का
प्रवाह के लिए
मुगालते में रहना
है बेकार
उम्मीद
हो जाती नाकाम
खोल दो
हृदयके तार
मत करो
इंतजार
भय लगता है मिलन से
क्योंकि होता है
विरह
मिलन के बाद
कह दो सारी अनकही बातें
मौका मिलता है
मुश्किल से।।
--- प्रेमित (c) 21st March 2013 (world poetry day)
शनिवार, 16 मार्च 2013
प्रवासी....
हर बार मंज़िल तक पँहुच नाहासिल सा लगा,
ज़ो देखा हर ओर, हर चेहरा बेगाना सा लगा ।
घर से दूर घर बनाना, हमेशा बंजारो सा लगा,
लाख कर ली वफाऐ़ं, हर लम्हा मगर पराया सा लगा।
तड़प रहा हूँ, आकर तेरी आगोश में सर छुपाने को,
चला जिस रस्ते ताउम्र, वापसी उसपे अनजाना सा लगा।
ना वो जमीं ना वो आसमां, चमचमाती भीड़ का कारवां,
दफ़न ना करना यहां मुझे, रूह भी अपना बेगाना सा लगा।
--- प्रेमित (c) 16th March 2013
ज़ो देखा हर ओर, हर चेहरा बेगाना सा लगा ।
घर से दूर घर बनाना, हमेशा बंजारो सा लगा,
लाख कर ली वफाऐ़ं, हर लम्हा मगर पराया सा लगा।
तड़प रहा हूँ, आकर तेरी आगोश में सर छुपाने को,
चला जिस रस्ते ताउम्र, वापसी उसपे अनजाना सा लगा।
ना वो जमीं ना वो आसमां, चमचमाती भीड़ का कारवां,
दफ़न ना करना यहां मुझे, रूह भी अपना बेगाना सा लगा।
--- प्रेमित (c) 16th March 2013
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